कोई पीड़ा नहीं
कोई अपेक्षा नहीं
जो जैसा है
जहां है, सब सही
ढल जाते हैं
जैसी भी हो
स्थिति परिस्थिति
जब सवाल ही नहीं
फिर जवाब की फ़िक्र कैसी
सुबह उठ
जीने की कोशिश में
काम पर जाते हैं
रोटी कमाने की
जद्दोजहद के बीच
साफ़ पानी – हवा का
स्वाद भी भूल जाते है
हर शाम सुनते पढ़ते खबरें
कुछ असहज हो जाता मन
जिसे किसी रंगीन
बहाने – अफ़साने से
बहलाते हैं,
सब अनदेखा अनसुना कर
हक़ीक़त से मुँह छिपाते
फिर एक बार मर जाते हैं
हम, मरे हुए लोग…
शुभा
6 replies on “मरे हुए लोग”
Bhut khubsurat abhivyakti Shubha..
Yes..most of us are so busy rushing from thing to other that forget to live and enjoy life .
🙏🌹🌹🙏
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धन्यवाद आपका
ये दौड़ भाग को ही “जीना” कहना अब सब की आदत हो गई है 😊
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Jiii
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बहुत सुंदर रचना
सच कहा आपने, इस भागदौड़ भरी दुनिया में जिंदा रहना एक मुश्किल काम, सभी मृत जैसे लगते हैं
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आभार नवनीत जी
आपकी सराहना हमेशा ही विशेष होती है
🙏🏻😊
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शुक्रिया आपका शुभा जी🤗
इतनी respect देने के लिए 💐🍫🍫🍨🍨🍩🧁🍭🍭
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