आज जो तुम मौन खड़े हो सब जानते हुए
कल तुम भी पर बीतेगी, तब मत रोना
अनदेखा कर रहे हो आज उसकी बेबसी
कल बेड़ियाँ फटें तुम्हारे पाँव तो मत रोना
वक़्त पूछेगा हिसाब, हर उस लम्हे का
जब मूक दर्शक बने, क़िस्सा सुन रहे थे उसके लुटने का
जो जलती रही चितायें यूँ ही सिसकती तितलियों की
तुम तक बचा सकोगे अपना दामन,
ये आग किसी की सगी नहीं होती
मौक़ा है आज आवाज़ उठाओ, आगे आओ और आग बुझाओ
ऐसा ना हो कि जलने लगे, चिरैय्या तुम्हारे आँगन की भी
शुभा

2 replies on “जलती सिसकियाँ”
Bhut khubsurat Abhivyakti…yes we all got to join our voices together to get justice for the unfortunate victim…aaj yeh kal woh chalta rahega nahin to….🙏🙏🙏
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Thanks 😊 for appreciating
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