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उठो आगे बढ़ो
आसमान कोई टूटा नहीं है
बलात्कार है बस एक दुर्घटना
दिखाती जो एक नीच की नपुंसकता
लज्जा का आभूषण जो बेड़ियाँ बने
उतार फेंको हर उस आवरण को
याद रखो
प्रकृति में सब कुछ नग्न ही है
फिर तुम ख़ुद की नग्नता से ना डरो
हुंकार भरो और नाश करो ।।
लोग मोमबत्तियाँ जलाएँगे
शांति मार्च के नाम पर कई क़िस्से गढ़े जाएँगे
होना कुछ नहीं इस नौटंकी से
दुर्बल समाज की सहानुभूति की आस में
तुम स्वयं अपना अपमान ना करो
शील – संकोच से बांधने का खेल
सदियों से है खेला गया
ये समाज आज क्या कर लेगा
जो सीता के अपमान का भी मौन साक्षी बना
सहानुभूति – सुरक्षा के आश्वासनों के
छद्म चक्रव्यूह को तोड़ो
अपनी शक्ति की पहचान करो
शरीर की कोमलता, लाचारी ना बने
सृजन की ताक़त रखने वाली बेचारी ना बने
क्यों परदे में छिपें हिम
अंधेरों से, रातों से या बलात्कार की
आशंका से क्यों से डरें हम
जिस दुर्घटना के अपराधी नही
उस की सजा के भागी क्यों बने हम
नंगी मानसिकता से लड़ना हो तो
नग्नता को ही अपनी ढाल चुनो
चरित्रहीनता के आरोपों से
अब तुम और ना डरो
उठो!! विद्रोहिणी बनो
शुभा
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11 replies on “उठो!! विद्रोहिणी बनो”
वाह प्रेरणादायक👏👏👏
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साधक जी धन्यवाद
🙏🏻
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बहुत ही प्रेरणादायक कविता है मैडम
🙏🙏🙏🙏🙏
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आभार आपका
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धन्यवाद 😊😊😊
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आज हर नारी को आवश्यकता है इस बदलाव की ,
प्रतिकार की । बेहद खूबसूरत लिखा है आपने ।👌
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वास्तव में मन उद्वेलित था ये लिखते हुए
क्यूँ नारी बेचारी ही बने रहे
एक और क्रांति की आवश्यकता दिखती है अब
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👌👌🙏🙏
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Very well expressed…
Yes , the women..the girls have to rise and fight for their right…rebel for this cause…
God bless you 🙏🙏
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धन्यवाद krish जी
आपके शब्द प्रेरणा देते हैं
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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Dhanyavaad…
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