
घर के पास वो एक पेड़
जिस में हर साल घोंसले बनाती है चिड़ियाँ
नर्म पंखों से रोकती है धूप और बारिश
कि उन नन्ही चहचहाटों को सहमा ना दे हवा
जतन से सहेजती है, सम्भालती है अपनी दुनिया
जानती है कि उड़ जाएँगे ये एक दिन
नन्हे चूज़ों के बड़े मज़बूत पंखों और
ऊँची उड़ान के सपने संजोती है चिड़िया
पतझड़ सावन शरद बसंत
हर मौसम लाता है हर साल एक नया रंग
सुबह से रात और फिर सुबह, वही कहानी
रोज़ बचाती है वो अपना घोंसला
तूफ़ान तो आएगा ही, जानती है वो
कि उजड़ना ही है सब कुछ एक दिन
कई बार बसाया है उसने ये बसेरा फिर, फिर और फिर
फिर भी, बदलती दुनिया से डरती है चिड़िया
शुभा
9 replies on “घोंसले की चिड़िया”
Khubsurat..
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Krish जी धन्यवाद
कुछ कोशिश करती हूँ लिखने की
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🙏🙏
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बहुत सुन्दर भाव👏👏
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अच्छा लगा ये जान कर कि रचना पसंद आइ आपको
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लेखन अगर भावों से परिपूर्ण हो तो पाठक हो आकर्षित करती हैं। लिखते रहिये🌿🌿
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😊 धन्यवाद 😊😊
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बहुत सुंदर अभिव्यक्त किया है 👌🏼👌🏼👏
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धन्यवाद अनिता जी 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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