
दवाखाना में डॉक्टर बच्चे को देखते हुए –
डॉक्टर : ये दवाएँ बच्चे को दिन में तीन बार सात दिन तक लगातार लेनी है । याद रखना ख़ाली पेट दवा मत लेना नहीं तो तकलीफ़ हो जाएगी फिर तबीयत और गड़बड़ हो सकती है । अगर कुछ खाने का मन ना हो तो कम से कम एक कप दूध और दो ब्रेड खा लेना तभी दवाई लेना। हो सके तो पेट ठंडा रखने के लिए कोई फल खा लेना बीच में या नारियल पानी ले लेना
आदमी : साहब क्या दो बार ही दवा नहीं दे सकते या केवल चार दिन तक ? बताया था ना अभी थोड़ी दिक़्क़त है पैसों की (संकोच के साथ कह पाया) ।
डॉक्टर : अरे ! चार दिन में ठीक होता तो उतने ही दिन की देता ना। अच्छा पूरी दवाएँ मैं अपनी ओर से मुफ़्त दिला देता हूँ। अब तो ठीक है? (असिस्टेंट को दवा देने का इशारा कर दिया, भला आदमी था डॉक्टर)
आदमी : बच्चे के साथ चुपचाप बैठा रहा। बच्चे का बदन तप रहा था लेकिन असल परेशानी तो ये थी कि अभी पिछले कई दिनों से काम बंद होने के कारण घर में एक ही टाइम चूल्हा जल रहा था। दवा मिल भी गई तो तीन बार क्या खिलाएगा “मुन्ना” को ? और फिर दूध??
डॉक्टर : ये लो दवा । अब क्या सोचने लगे? चलो अब सात दिन बाद फिर दिखाने आना।
आदमी : मन ही मन सोचने लगा काश केवल दवा से ही मुन्ना ठीक हो जाता !
शुभा
2 replies on “दवा – खाना”
Reality of so many homes today…very few understand…
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Yes it is hard to face this
And Still many have much to waste
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