जलता नहीं है दीया
जलती तो बाती और उससे लिपटी
तेल की धार है….
वो जो जल रही निरंतर
उसकी रौशनी का श्रेय
कैसे ले सकता है कोई
फिर चाहे वो मिट्टी हो या
उससे बना कोई आकार है…..
ख़ुद को तपाने पर ही
रौशनी होती है पैदा
बाकी तो आवरण का कारोबार है …..
दीपक की सुंदरता में खो जाने वालों
याद रखो
दीपक के ठीक नीचे ही होता
गहरा अंधकार है…….
शुभा
7 replies on ““जलता नहीं दीया””
बहुत सुंदर
अक्सर उन्हीं के घर अंधेरा रह जाता है
जिन्हें रोशनी से बहुत प्यार है
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बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी
दीये के आवरण से आजकल चकाचौंध है हम….रौशनी की किसको परवाह है
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बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी दीये के आवरण से आजकल चकाचौंध है हम….रौशनी की किसको परवाह है
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जलता नहीं दिया… Excellent
कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह दिया दीदी आपने
आंखों से जो दिखता है वैसा होता नहीं, समझ के
अभाव में या कमी में हम पूरा देख नहीं पाते..
Reality to Kuch और ही होती है….
समझ पूरी होती है तो पूरा देख पाते हैं 🤗
क्या मैंने ठीक समझा दीदी?
अगर कुछ और समझा हूं तो please Sahi Kar के बताएं 😊🙏
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एकदम इसी तरह का अर्थ था विकास भाई
आपको पसंद आई ये बात और इतने अच्छे से आपने describe भी किया – आभार
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“ख़ुद को तपाने पर ही
रौशनी होती है पैदा
बाकी तो आवरण का कारोबार है …..
दीपक की सुंदरता में खो जाने वालों
याद रखो
दीपक के ठीक नीचे ही होता
गहरा अंधकार है…….”
यह पंक्तियां दिल को छू गई।
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तहेदिल से शुक्रिया आपका
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