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जाने कितनी सारी बातें
जहाँ भर की प्यारी बातें
जो बातें करते सुबह से शाम हुई
वही बातें जब सरेआम हुई
और लोग भी बनाने लगे बातें
धीरे धीरे लगने लगा
ये बातें, न करते तो अच्छा होता ….
बचपन से सुने कायदे कई,
ज़िंदगी के कायदे,
ज़िन्दगी के लिए
कायदे से जीने की कोशिश
लेकिन कभी पूरी पड़ी ही नहीं
आधी सी ये दुनियादारी लिए
जाये कहाँ,
हम आधे – अधूरे
क़ायदों रवायतों सीखने की कोशिश में
ज़िंदगी ही रूखी लगने लगी
ये क़ायदे रवायतें, ना सीखते तो अच्छा था…….
सामानों – मकानों की फ़िक्र के बीच
संजो रहे थे ‘ज़रूरी’ कागज़ कई
कि, वो पुरानी डायरी मिली
पन्नों में बीते कल की खुशबु
कलियाँ यादों की झरने लगी
बांटे किस से ये सुनहरी यादें
कोई भी तो पास नहीं
फूल पन्नों में रखे हुए
हथेलियों में चुभने लगे
पुरानी डायरी के पन्ने, न पलटते तो अच्छा था……..
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