एक साधारण दिन और बाक़ी दिनों की तरह मेरी ग्यारह साल की बिटिया स्कूल के लिए तैयार हो रही थी। सुबह साढ़े छः बजे उससे हुई बातचीत देखिए कहाँ तक पहुँच गयी…
मैं – कल का उत्तपम कैसा था ?
एकदम मस्त…उसने कहा।
मैं – और रोटी रोल
बिटिया – वो भी अच्छा था
तो फिर खाया क्यूँ नहीं , रोटी रोल पूरा डस्टबीन फेंक दिया है ।
(उसने चौंकते हुए मेरी ओर देखा और फिर अपनी चोटी बनाने लगी)
वो – maths वाले सर ने लंच का टाइम भी ले लिया
मैं – अरे खाना तो खाने देना था, अच्छा आज sandwich रखा है
वो – wow, आज तो मेरा टिफ़िन सबसे पहले फ़्रेंड्ज़ ही खा जाएँगे (मुझे समझ नहीं आया ख़ुश है या परेशान, ख़ैर फिर उसकी बस आ गयी) ।
कुछ दिनों बाद फिर रोटी सब्ज़ी डस्टबीन में दिखाई दी, फिर कभी पोहा दिया तो वो या फिर किसी दिन vegetable rice का ये हाल हुआ। अब कुछ समझ आ रहा था कुछ चीज़ें जो पसंद नहीं आती थी वो पेट की जगह डस्टबीन में। लेकिन मेरे पूछने पर wow मम्मा इतना टेस्टी था कि क्या बताऊँ….आदि कहानियाँ।
एक दिन सोचा आज उसे पकड़ा जाए । सुबह का समय अधिकतर अच्छा बीतता है घर में, क्यूँकि सब ताज़ा रहते हैं.. सो फिर अचानक मैंने बात शुरू की…”बेटा कल पनीर में नमक अधिक था क्या? ”
वो – ना ना वो तो बहुत अच्छा था …सब finish हो गया।
मैं – और परसों जो पत्तागोभी वाला रोटी रोल दिया था, वो?
वो – म्म्म्ह्ह (सोचते हुए) ठीक था, अच्छा था मम्मा…
मैं – बेटा तुम इतना झूठ क्यूँ बोलती हो, खाना भी पूरा नहीं खाती, टिफ़िन भी ऐसे ही…..मैं सुबह से उठ कर मेहनत करती हूँ और वो सब dustbin में चला जाता है…(बस आ गयी फिर से)।
शाम को वो ज़रा चुप थी, मेरे कोलेज आने के बाद गले लग गयी और फिर रोने स्वर में कहा – मम्मा आप सच में अच्छा टिफ़िन बनाती हो लेकिन मैं नहीं खा पाती। मैंने कहा – फिर झूठ, पनीर, sandwich, मैगी ये सब की भूख लगती है, रोटी सब्ज़ी की नहीं” तुम इतना झूठ क्यूँ बोलने लगी हो?
वो – मम्मा आप भी तो इतना pressure डालते हो सब कुछ सही करने का। ग्रीन vegetable खाओ – मैगी नहीं, रोज़ नहाओ, अच्छे से बातें करो, रूम ठीक रखो, पढ़ाई भी टाइम पर करो, टेनिस भी खेलने जाओ….मैं अपने मन से कुछ करना चाहती हूँ तो झूठ ही बोलना पड़ता है। सच्ची मम्मा मैंने आज तक जानबूझकर कर झूठ नहीं बोला। मैं डर जाती हूँ कि आपको बुरा ना लगे या आप मुझे failure ना समझने लगो इसलिए झूठ निकल जाता है। जब आपका बनाया टिफ़िन नहीं खाओ तो आपको लगता है आपने अच्छा नहीं बनाया या फिर उसकी मम्मा अच्छा बनाती है….मैं आपको ख़ुश रखने के लिए भी झूठ बोल देती हूँ।
मैं – चुप, कोई शब्द नहीं थे, उसने आज एक भी झूठ नहीं कहा था। सब सच था, जिसने मुझे अपने behaviour के बारे में सोचना को विवश कर दिया।
कहीं हम अपने बच्चों, सम्बंधियों, दोस्तों या साथ काम करने वाले सहयोगियों पर झूठ बोलने का दबाव तो नहीं डाल रहे……सोचिए….
4 replies on “मैंने क़ब्बभी जानबूझकर कर झूठ नहीं बोला मम्मा….”
आप सभी का पढ़ने और पसंद करने के लिए दिल से आभार
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बहुत बेहतरीन पोस्ट 👏👏👏👏 जहाँ तक मुझे याद है लगभग-लगभग कुछ ऐसी ही कहानी मैं ने YouTube पर देखी थी😊🙌❤
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धन्यवाद
वास्तव में बच्चों की बातचीत से कुछ सीखने मिल जाता है, अगर ध्यान हो तो YouTube का link share करिएगा
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https://youtu.be/3MLDuRJDWow 🙂🙌
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