अपने हाथों की लकीरों में
एक चेहरा एक सपना देखा था कभी
छोटी सी दुनिया सजाने की कोशिशो के बीच
धीरे धीरे ख़्वाब तेरी मेरी आँखो के एक हो गए
ख़ूब कसा ज़िंदगी ने भी अपने पैमाने में
असर कुछ ऐसा हुआ वक़्त की आज़माइश का
कि जाने कब मैं तुम में ढल गयी और
तुम मेरी पहचान बन गए…….
शुभा