तुम मेरी पीठ थपथपाओ और मैं तुम्हारी
तुम मेरी पीठ थपथपाओ और मैं तुम्हारी
साहित्य – खेल से ले के राजनीति तक में यही दौर है
साहित्य – खेल से ले के राजनीति तक में यही दौर है
नेताओं का क्या दोष दें, नोटों से वोट के खेल का
पुरस्कारों – सम्मानों से ले कर सगे सम्बन्धियों तक में
दमड़ी – सिक्कों का ही ज़ोर है…..
जो आशा जगा जाते थे दिलों में सच्चाई की जीत की
ये वो शहर नहीं यारों,
उन क़िस्सों के शहर कहीं और थे
यहाँ ना ढूँढो ख़ुद्दारी ये दुनिया कुछ और है…..
नेताओं का क्या दोष दें, नोटों से वोट के खेल का
पुरस्कारों – सम्मानों से ले कर सगे सम्बन्धियों तक में
दमड़ी – सिक्कों का ही ज़ोर है…..
जो आशा जगा जाते थे दिलों में सच्चाई की जीत की
ये वो शहर नहीं यारों,
उन क़िस्सों के शहर कहीं और थे
यहाँ ना ढूँढो ख़ुद्दारी ये दुनिया कुछ और है…..