हे राम आ जाओ आज कही से
ताड़का – शूर्पणखा वध सुनते कितने वर्ष है बीते
ख़ूब सुनी अब तक स्वर्ण मृग कहानी
मारीच को मारा मुक्ति दिलाई
युग बीते जब तुमने निशाचारो से धरती बचाई
पाप अब फिर बढ़ने लगे हैं
क्या मानव, क्या पशु पक्षी ही
एक दूसरे से सब हैं परेशान
घायल धरती का कण कण पुकारे
कहीं से फिर आ जाओ राम हमारे !
इंजीनियर के भीतर जो
आ जाता कोई अंश तुम्हारा
प्रतिबद्ध हो जाते वो सत कर्म करन को
जो तुम होते आज यहाँ पर
मिल जाते अच्छे घर, पुल, कुए रास्ते सभी को
आ जाओ तुम फिर एक बार
डॉक्टरो को भी दे दो कुछ ज्ञान
लाभ हानि के फेर से उनको भी उबारो
भगवान तुल्य माना है जिनको
प्राण कँपा रहे वो रुपयों के मारे
सेवा – संयम का इनको पाठ पढ़ा दो
एक बार इन के मन में बस जाओ आज !
शिक्षक भी कुछ ठीक नहीं है
व्यापारी सी चलता है चाल
विद्या नहीं विद्यालयों का है ऊँचा मोल
इसीलिए आज भी एकलवयो से भरा है भूगोल
न्याय – अन्याय का पढ़ाने वालों को दे दो मंत्र
बिगाड़ डाला है इन्होंने गुरु – शिष्य सम्बंध
प्रेम – मर्यादा का दे दो ज्ञान
वरना शिक्षा वस्तु ही बन जाएगी भगवान !
अगर तुम भारत में पधारे आज
तो निश्चित करुणा से भर जाओगे राजा राम
देखोगे तुम कि भूखे – प्यासे है आम – जन
किंतु वही कही पर दिखावे में फेंका जा रहा है अन्न
बेधड़क करते जा रहे हम अन्न का अपमान
कपड़ों का है मेला कही पर
तो कहीं नंगे बदन घूम रहा बचपन
नारी का भी भूल गए हैं सम्मान
तुमने तो केवट को उबारा था
ऊँच नीच का भेद मिटा कर
समानता का पाठ फिर दोहरा दो राम !
जाने कितनी सरकारो में
निर्धन – अशक्तों के लिए असंख्य योजनाए बनी
हुआ कुछ ख़ास नहीं क्यूँकि
योजना तो फ़ाइलों में ही चलती रही
राज काज भी तुम एक बार सिखा दो राम
बता दो कैसा था राम का शासन
अन्याय करने पर मिलता था कठोर दंड
बिगड़ी आज हमारी बना दो राम !
व्यर्थ लग रहे है राम नाम के नारे
कष्ट और क्लेशों से त्रस्त हो गए मानव सारे
त्रिण से लेकर हिमाला तक सब तुम्हें पुकारे
आ जाओ फिर राम हमारे
बहुत पुरानी हुई रावण वध की कहानी
बीत गयी बातें सब रघुकुल की बानी
राम के न्याय की झलक आज दिखा दो राम
मनुष्यों को मानवता का पाठ फिर पढ़ा दो राम
आज हर मानव के भीतर राम को जगा दो राम!!!
शुभा
2 replies on “हे राम”
बहुत सुंदर अभिव्यक्त किया है,👌 समाज की समस्याओं को दर्शाती हुई रचना 😊
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आभार…धन्यवाद अनिता जी
प्रोत्साहन से लिखने का मन बनता है
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