उन दिनों जब हम कॉलेज में पढ़ते थे, जब एक तिपहिया टेम्पो हमारा आने जाने का साधन होता था और बिना कैंटीन के कॉलेज में टिफ़िन ले कर जाते और शाम होते घर आ जाते, उन दिनों हमारे टेम्पो स्टैंड पर किनारे की चाय दुकान पर एक छोटा सा लड़का अपने पापा का हाथ बँटाता टूकूर टूकूर देखता जाता। मैं और मेरी एक सहेली हम चाय नहीं पीते थे लेकिन क्यूंकि हमारा तिपहिया वहां कुछ देर रुकता ही था सो वहां की गतिविधियों पर नज़र रहती ही थी | वो लड़का लगभग चार पांच साल का रहा होगा तब, वो एक पेंसिल ले कर अपनी स्लेट पर कुछ भी गोल मोल लाइने खींचता रहता | मैं शुरू से ही छोटे बच्चों को देख उन्हें चिढाती – ऑंखें दिखाती या हल्का फुल्का तंग करती थी, ताकि देखूं कि उस बच्चे का reaction कैसा रहता है | ये लड़का डरता तो बिलकुल नही था, उल्टा मुझे चिढ़ा देता जीभ निकाल के| एक दिन उसने मुझे अपने हाथ का पारले – जी बिस्किट दिखाया और देने के लिए इशारा कर पास बुलाने लगा | मेरी सहेली के मना करने के बाद भी हम टेम्पो से उतर गए |
उसने पुछा “आप बिस्किट खाओगे?”
मैंने – नहीं
वो – क्यूँ ?
मैं – तुम्हारे पास तो एक ही बिस्किट है !!
वो – तो आधा – आधा कर लेते हैं |
मैं – (सोच में – अब क्या करू, इसके हाथ कितने गंदे हैं, ये बिस्किट भी झूठा है)
तब तक उसके पापा ने उसे चाय के कप उठा लाने कहा और वो अभी आया कह के भाग गया | हम भी अपनी सवारी पर चढ़ गए | मन में अपना ही दोगलापन ह्रदय को छिले जा रहा था| वो तो मासूम बच्चा था लेकिन मैं तो बड़ी थी, मैंने क्यूँ उसके साथ इस तरह का भेदभाव किया | अगर मेरे किसी परिचत का बच्चा इतना इसरार करता तो भी मैं क्या चुप रहती, नहीं खाती ? इस अपराध – बोध को दूर करने के लिए दुसरे दिन उसके लिए बड़ी वाली डेरी – मिल्क चॉकलेट ले कर गई | टेम्पो से उतरते चढ़ी ही उसे देख कर जैसे चॉकलेट देने की कोशिश की उसने हाथ पीछे कर लिए , बोला “आपने मेरे से बिस्किट नहीं लिया, जाओ मैं भी नहीं लेता| आप मेरेको गन्दा समझती हो न” | उसके पापा तब तक आ गए, मैं भी समझ गई की चाय वाले भइय्या को ये सब अच्छा नहीं लगा | मैंने तुरंत बात सम्हालते हुए कहा “नहीं बच्चे, कल तो मेरी सहेली भी थीं ना, उसको कैसे देते बिस्किट”| फिर वो धीरे से मुस्कुराया और चॉकलेट ले ली | चाय वाले भैय्या भी अपने काम में लग गए | फिर तो जब मैं खडी होती वो आ जाया करता बतियाने …..दीदी ये दीदी वो| उसका नाम था ‘कोमल’ और अपने नाम के अनुरूप उसके कोमल – कोमल सपने थे…… घोडा – गाड़ी में घुमुगा, झुला झुलूँगा और ‘इस्कूल’ जाऊंगा, ये भैया लोग जैसे कालेज जाऊँगा फिर टाई पहन कर बड़ा आदमी बनूँगा | पास ही के स्कुल में उसके पापा ने उसका एडमिशन में कराया था पर वो जाता कम ही था | धीरे – धीरे जब मेरा कॉलेज का टाइम बदलने लगा, तो बातचीत कम होने लगी| उसके ‘इस्कूल’ का टाइम बढ़ गया था और मेरी पढाई भी पूरी होने वाली थी, सो अब भी उस से एकाध बार बात होती मगर अब कम| मेरा कॉलेज पूरा होने को आया और फिर शादी वादी के बाद तो ध्यान से उतर गया कोमल । बच्चों के कुछ बड़े होने पर मुझे PhD करने की सूझी तो देखा “कोमल” एक बड़ा लड़का लड़का हो गया था। लगभग आठ साल में चाय की दुकान भी बड़ी हो कर मिक्स्चर, भजिए, सिगरेट और पान मसाला आदि का छोटा मोटा कैंटीन हो गई थी। ख़ुद भी गुटखा दबाए रहता और उसने मेरी तरफ़ सिर्फ़ एक बार देखा और नज़र फेर ली।
कुछ दिनों बाद मैंने ही पहल की “तुम कोमल ही हो ना?” हाँ क्यूँ (बेहद ठंडा जवाब) । मुझे पहचाना ? हाँ (वही उदासीनता) बड़ा बददिमाग़ हो गया है, सोचते सोचते मैंने अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी। लगा मुझे क्या पड़ी वैसे भी इन लोगों में अजीब तरह की तल्ख़ी और ईगो होता है । दूसरे दिन ख़ुद ही मेरी गाड़ी को हाथ दिखा रोकने लगा, कहने लगा “दीदी दीदी ….चाय तो पी लो”। मैंने कहा ‘नहीं मैं अब भी चाय नहीं पीती’ । उसने फिर जिद्द की “अच्छा तो कम से कम ये बिस्कुट खा लो” (वही पुराना बिस्किट) । मैंने पूछा कल क्या हुआ था तुमको ? बोला “डर गया था, आप पूछेंगी पढ़ा क्यूँ नहीं ?” मैं क्या बताता कि बापू दारू में डूबा चला गया और मैं भी गुटखा – नशे के चक्कर में पड़ा रहा दो तीन साल । ले दे के बारहवी पढ़ी वो भी मुश्किल से सेकंड डिविज़न । अम्मा ने मेहनत कर दुकान को बढ़ाया, मेरा इलाज भी कराया तब जा के यहाँ बैठने लायक़ हुआ।”
अब? मैंने पूछा ।
अब क्या दीदी । समय निकल गया और उम्र भी । अब तो घरवाली भी आ गई है । अब कहाँ की पढ़ाई और कहाँ का कालेज….. “तुम्हें पता है कोमल मैं कॉलेज क्यू आती हूँ? पढ़ने, पढ़ाई पूरी करने। मेरे भी दो बच्चे है और ढेर रिश्तेदारी भी….लेकिन मेरा मन है अपना सपना पूरा करने का । क्या तुम भी मेरे साथ एक सपना देखोगे?एक सपना अपना पुराना सपना पूरा करने का, देर कभी नहीं होती बस हम डर जाते हैं। कोमल की आँखे चमक तो रही थीं मगर उनमें असफल रह जाने का डर भी था….
क्या तुम भी एक सपना देखने में डर रहे हो असफलता के डर से?
2 replies on “क्या तुम मेरे साथ एक सपना देखोगे……?”
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Aise lagta hai jaise meri hi kahani hai ya yun kaho hamari ya sabki kahani hai .
सपनो से कर दो कमरा फुल
फिर देखना
एक चीज़ मिलेगी वंडरफुल ।।
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कुछ सपने कुछ efforts और इससे कभी सफलता तो कभी डर । wonderful चीज़ के लिए थोड़ी मेहनत तो करनी होगी
लगभग ऐसा ही है हमारा जीना ।
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