चाँद सितारे, महल – अटाले
बिता बचपन, साथी – प्रेमी प्यारे
सब ख़्वाबों में आते हैं
इन सपनो में गूँथी हुईं
कुछ ख़्वाहिशें कुछ बातें
कभी मीठी तो कसैली भी
कभी सच्ची तो कुछ झूठी भी
यादें भी तो झूम झूम कर आतीं
सपनो की जब बातें होती
सूरमई सुबह की ओस में एक बार
देखती हूँ मैं भी सपना
कि निकली हूँ सपनो की खोज में
और सचमुच मिल रहे हैं सपने
कोई तकिए के नीचे, परदे के पीछे
या दरवाज़े की ओट में
एक ख़्वाब सतरंगी इंतज़ार कर रहा था पलकों पर
तो नीले आकाश सा सपना बैठा मिला झरोखे पे
कुछ आधे – कुछ पूरे, सपनो की टोली
बैठी थी मेरे ही कंधो पर
कुछ शंका में, कुछ अचरज में
आगे बढ़ते देखा मैंने
सुरों की राह ताकते मधुर संगीत सा इक सपना
अलसाया पड़ा हुआ था तबले पर!!
कुछ ख़्वाब मिले इठलाते मदमस्त से
शायद वो पूरे होने के क़रीब थे
कुछ आधे – अधूरे टूटे हुए भी मिले
वो ख़्वाब जो कभी हसीन थे
ऐसे ही कुछ भूले – भटके
सपनो की यादें थी बिखरी यहाँ वहाँ
मगर शिकायतो – शिकवों के लिए
ना थी कोई जगह वहाँ
आधे भी ख़ुश और पूरे भी
रंगीन भी महकते और बेरंग भी
बेसुरा राग ना था कोई वहाँ
किसी और ही सुर से सजी थी वो दुनिया
रहा ना गया आख़िर, पूछ ही लिया
क्या अजब ग़ज़ब है ये क़िस्सा
कैसी अनोंखी है ये रीतियाँ
ख़्वाबों की है क्या कोई अलग ख़ुदाई!!
एकदम से अब सन्नाटा था,
कि मेरे ही भीतर से
किसी सपने ने आवाज़ लगाई
हम हक़ीक़त नहीं लेकिन उससे कम भी नहीं
सच्चे से लगते हैं हम अफ़साने ही सहीं
जिसने जैसे देखा हमको,
हम सपनो ने वैसी रंगत पाई
बसंत बहार – पतझड़ सावन की तरह
तो मौसमी मिज़ाज तुम्हारे हैं
हम ख़्वाब मौसम के क़ैदी नहीं,
जैसे कल थे वैसे ही हैं आज
तुमने इसे छोटा मानो या बड़ा उसे
है वजूद हमारा हमेशा एक सा ही
जब चाहो तब तुम तो ज़ोर लगा लो,
शायद सच हो जाएँ हम भी
ख़ूब पढ़ लो इबारतें तो शायद
मुकम्मल हो जाए कोई तस्वीर
मगर, जो ना हुए पूरे तो भी हमें कोई ग़म नहीं
किसी ख़याल में या बेख़याली में मौजूद रहेंगे हम
अधूरे ही सही
कह लो हमें हक़ीक़त या फ़रेब
कभी ख़ौफ़नाक लगे या फिर हसीन
स्याह दिखे या बेरंग
या लगते हों तुम्हें रंगीन
ये सब खेल तुम्हारे चश्मे का है
हम तो बस ख़्वाब हैं,
हमारी तो पानी सी है तासीर।
शुभा झा बैनर्जी
2 replies on “सपनो से बातें”
Awesome poetry
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Thanks a lot
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