आज बिटिया की बातें सुनकर अपने बचपन के दिनों की याद आ गयी। तब…जब बहुत प्रश्न होते थे मन में, तब जब सही को सही और ग़लत को ग़लत बोल देते थे। तब जब हर बात पर डिप्लमैटिक चाशनी चढाने की ज़रूरत नहीं होती थी……….
तब जब बहुत छोटी थी मैं शायद दस ग्यारह साल की, तब एक प्रश्न हमेशा मन में आता कि यदि ईश्वर सब जानने वाला है, सबको जानने वाला है उसे आदि – अंत का भी पहले से ही पता है तब वो क्यूँ अच्छे लोगों को केवल सुख – ख़ुशियाँ और बुरे लोगों को दंड नहीं देता? ये तब की बात जब घर पर सत्यनारायण कथा या गीता या रामायण की कथा या किसी एक घटना पर अक्सर बात होती थी। तब हमारे बाबूजी (दादाजी) हमें “आदौ राम तपोवनादिग्मनम….” में संक्षिप्त रामायण पाठ याद कराते। आख़िर एक दिन बाबूजी से पूछ ही लिया कि ‘ईश्वर के calculations में गड़बड़ क्यों हो जाती है, अगर कोई व्यक्ति पापी है – चालबाज़ है तो वो राजा या रानी बनता ही क्यूँ है? या फिर जो सत्यवान – दयावान होता है वो अकसर ग़रीब या मजबूर?’ हँसने लगे बाबूजी, उनकी हँसी बहुत सरल – स्निग्ध, इसलिए शायद मैं उनसे कुछ भी पूछ लेती थी । बोले ‘बेटा ये बताओ जब तुम बदमाशी करती हो और तुम्हारी दीदी नहीं करती तो पापा – मम्मी क्या करते हैं ? क्या तुम्हें खाना नहीं देते या घर से बाहर निकाल देते हैं या फिर समझाते हैं ? और क्या दीदी को इस कारण अधिक प्यार और खिलौने मिलते हैं कि तुमने बदमांशी की लेकिन उसने नहीं?’ मैं भी कहाँ कम थी, मैंने कहा “समझाते तो हैं पर डाँटने – मारने के बाद और दीदी को बिना डाँटे मारे। और कई बार तो वो ग़लती भी करती है तो भी प्यार से समझाते हैं और मेरी तो ग़लती के शक पर भी डाँट पक्की !!”
इस बार और ज़ोर का ठहाका लगाया बाबूजी ने (हमारे घर धीरे से कोई नहीं हँसता)। “अच्छा ये बताओ बदमाशी की सज़ा केवल मम्मी पापा या बड़ों को पता लगने पर ही मिलती है या कभी किसी और रूप में भी ग़लती सामने आ जाती है?जैसे कभी चोट लग जाना या कुछ और….तब मम्मी पापा क्या बर्ताव करते हैं.,,? इस बार मैंने कुछ सोच कर जवाब दिया था
“ हाँ हाँ बाबूजी कई बार तो लगता है कि बच गए लेकिन कभी कोई चीज़ टूट जाती है या कभी दोस्त लोग ठीक से बात नहीं करते कभी कभी तो सब के सामने हँसी उड़ जाती है….फिर तो मम्मी पापा ही बचाते हैं, help करते है…” बाबूजी ने कहा बिलकुल ऐसा ही हमारे जीवन में भी होता है, जब हम कुछ भी करते हैं तो उसका कुछ ना कुछ प्रभाव होता ही है। ज़रूरी नहीं कि ईश्वर तुरंत दंड दे लेकिन प्राकृतिक रूप से संतुलन बन ही जाता है। समझीं? (मैं मन ही मन – नहीं समझी, नहीं) वे कहते रहे ईश्वर यही करता है – संतुलन ! क्यूँकि वो चाहता है कि अंततः सभी ठीक रहे – अच्छे बने, अच्छे हों या बुरे वो हमसे बराबर प्यार करता है। अगर हम लगभग हर बार अच्छे हैं तो किसी एक बार छूट भी मिल जाती है, जैसे दीदी को। ईश्वर के लिए तो सब बराबर हैं – सब उसके बच्चे जैसे हैं। अगर ईश्वर अपने बुरे बच्चों को बुरा समझेगा तो वो कभी भले नहीं बनेंगे हैं ना? ???? ज्यादा तो समझ नही आया , बस इतना पकड़ पाई कि कहीं तो संतुलन का काम चल रहा है ….पर कहाँ ??? प्रश्नवाचक चिन्ह फिर चेहरे पर……ख़ैर तुम बाद में समझोगी, अच्छा! और बाबूजी अपने काम में लग गए (लिखना – पढ़ना ही उनका काम था, ताश भी खेलते – अकेले)|
इस बातचीत को कई साल बीत गए और ऐसे हर मौक़े पर, जब मेरी इश्वर के न्याय के प्रति आस्था डगमगाती, मैं सोचती कि कहीं तो कुछ समझने में गड़बड़ है……. फिर धीरे धीरे “कर्म और फल” पर ध्यान जाने लगा जो संतुलन का कारण है (आप चाहें तो ईश्वरीय लाठी मन सकते है)। नियति हमें कभी डरा – धमका कर तो कभी प्यार से तो कभी दंड दे कर सही रास्ता दिखाती ही है। हम समझ गए तो आगे सब ठीक होने लगता है और नहीं समझे तो भी हमारे “बुरे या नासमझ से भले या समझदार” बनने तक के सफ़र में कुछ अच्छा कुछ बुरा होता रहता है (कभी ख़ुशी कभी ग़म—कभी ज़्यादा कभी कम ) इन सब के बीच कोई तो है जो हमारे अंदर “सब ठीक होने” की आस जगाए रखता है। मेरे ख़ुद के बुरे या नासमझ से समझदार या अच्छा बनने का सफ़र अभी चालू ही है, पता नहीं कब तक चलेगा? हम सब के कर्मों का खाता भी कहीं चालू है , उसमें किसका क्या हिसाब है ये भी पता नहीं कब update होगा….बस जीवन एक ढर्रे पर चलने लगा पढ़ाई – नौकरी – शादी – बच्चे आदि इत्यादि…..
लेकिन फिर एक दिन मेरी बेटी की बातों से धयान उसी घटना पर चला गया| एक दिन बिफरती हुई आई और शुरू “पता नहीं लोगों को दिखाई क्यूँ नहीं देता…अंकल को दिख रहा है कि ग़लती किसकी है पर अपने पापा – मम्मी को कुछ नहीं बोलते और कामवाली दीदी को नौकरी से निकाल दिया (बग़ल वाले अंकल ने) वो रोते – रोते अपने घर चली गई बेचारी” फिर बोली मम्मा क्या भगवान केवल अमीरों का ध्यान रखते हैं ? वो कामवाली दीदी भी तो कितना उपवास रखती है, पूजा करती है..” मेरे पास भी लगभग वही जवाब थे जो मुझे मिले थे। उसके प्रश्न थमे नहीं “मम्मा ये कर्म – फल वाली बात मुझे पूरी ठीक नहीं लगती । माना कि जो ग़लत है वो कभी न कभी भुगतेगा ही, लेकिन ये कर्म और फल के बीच जो उसने आज जो किसी को दुखी कर दिया उसका क्या?” फिर बिटिया ने पूछा “मम्मा किसी से रिश्ता होने का मतलब उसकी ग़लत बात को या आदत को भी चुपचाप देखते रहना है? क्या हर प्रॉब्लम का solution भगवान करेंगे ? क्या हम लोग ख़ुद कुछ चीज़ें ठीक नहीं कर सकते? बात तो उसकी एकदम सही थी!!!
2 replies on “अच्छा या बुरा ये तो ईश्वर जाने…..”
I love all your stories …. your expressions and feelings depicted 🙏🏻🙏🏻
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Thanks a lot
Such appreciation motivates me
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